पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच हालिया तनाव ने डूरंड लाइन को सुर्खियों में ला दिया है, जो दोनों देशों के बीच की सरहद (बॉर्डर) है. पिछले दिनों कतर की तरफ से जारी किए गए सीज़फायर स्टेटमेंट में डूरंड लाइन को ‘बॉर्डर’ बताए जाने से कथित तौर पर अफगान अधिकारी नाराज़ हो गए, जिसके बाद कतर को एक बदला हुआ स्टेटमेंट जारी करना पड़ा.
पहले एक बयान में कतर ने कहा था, “विदेश मंत्रालय ने कतर राज्य की इस उम्मीद को पुख्ता किया है कि यह महत्वपूर्ण कदम दोनों भाईचारे वाले देशों के बीच सीमा पर तनाव खत्म करने में मदद करेगा और इलाके में स्थायी सुलह के लिए एक ठोस नींव रखेगा.”
हालांकि, स्टेटमेंट को बदलकर उसमें से ‘दोनों भाई जैसे देशों के बीच बॉर्डर पर’ वाला फ्रेज़ हटा दिया गया और कहा गया, “विदेश मंत्रालय ने कतर राज्य की इस उम्मीद को पुख्ता किया है कि यह ज़रूरी कदम दोनों भाई जैसे देशों के बीच तनाव खत्म करने में मदद करेगा और इलाके में टिकाऊ सुलह के लिए एक मज़बूत नींव रखेगा.”
डूरंड लाइन क्या है?
अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बीच यह बॉर्डर लाइन 1893 में हिंदू कुश में बनाई गई थी, जो अफगानिस्तान और ब्रिटिश भारत को आदिवासी इलाकों से जोड़ती थी. यह 19वीं सदी में रूसी और ब्रिटिश साम्राज्यों के बीच हुए ग्रेट गेम की एक निशानी है, जिसमें अफगानिस्तान को अंग्रेजों ने पूरब की ओर रूसी विस्तारवाद के डर से एक बफर के तौर पर इस्तेमाल किया था.
साल 1893 में सर हेनरी मॉर्टिमर डूरंड और उस वक्त के अफ़गान शासक अमीर अब्दुर रहमान के बीच एक एग्रीमेंट साइन हुआ, जिससे डूरंड लाइन बनी.
दूसरी अफ़गान जंग खत्म होने के दो साल बाद 1880 में अब्दुर रहमान राजा बने. इस जंग में अंग्रेजों ने अफ़गान साम्राज्य के कई इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया था. डूरंड के साथ उनके एग्रीमेंट ने भारत के साथ ‘अफ़गान सीमा’ पर उनके और ब्रिटिश भारत के ‘प्रभाव वाले क्षेत्रों’ की सीमा तय की. सात क्लॉज़ वाले इस एग्रीमेंट में 2,670 किलोमीटर लंबी एक लाइन को मान्यता दी गई, जो चीन की सरहद से लेकर अफ़गानिस्तान की ईरान के साथ सीमा तक फैली हुई है.
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1947 में आज़ादी के साथ, पाकिस्तान को डूरंड लाइन विरासत में मिली और इसके साथ ही पश्तूनों का इस लाइन को मानने से इनकार और अफगानिस्तान का इसे पहचानने से इनकार भी मिला.
‘बॉर्डर’ को लेकर अफगानिस्तान क्यों नाराज़?
इस्लामाबाद डूरंड लाइन को इंटरनेशनल बॉर्डर मानता है. वहीं, अफगानिस्तान इससे इनकार करता है. तालिबान सहित अफगानिस्तान की पिछली सरकारों ने इसे एक बनावटी बंटवारा बताया है, जो पश्तून कबीलाई ज़मीनों को बांटता है और अफगानिस्तान की संप्रभुता को कमज़ोर करता है.
हाल के सालों में, यह बॉर्डर लाइन दोनों देशों के बीच तनाव का एक बड़े तनाव की वजह रही है, जिसमें इस्लामाबाद ने इस पर बाड़ लगाई और अफगान गार्ड्स ने इसके कुछ हिस्सों को तोड़ दिया. जहां अफगान इस लाइन को ‘औपनिवेशिक निशानी’ कहकर खारिज करते हैं. वहीं, दूसरी तरफ यह पाकिस्तान के लिए क्षेत्रीय अखंडता का मामला है.
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